कभी किसी चीज़ के लिए तरसे नहीं हे,
पर आपसे बात करने के लिए तरस जाते हे।
मुझे तेरे काफ़िले मेँ चलने का कोई शौक नहीँ,
मगर तेरे साथ कोई और चले मुझे अच्छा नहीँ लगता।
ये जीवन है साहब उलझेंगे नही तो सुलझेंगे कैसे।
और बिखरेंगे नहीं तो निखरेंगे कैसे।
खुद के लिए इक सज़ा,
मुकर्रर कर ली मैंने,
तेरी खुशियो की खातिर,
तुझसे दूरियां चुन ली मैंने !!
तेरे इश्क़ में इस तरह मैं नीलाम हो जाऊं।
आख़री हो तेरी बोली और मैं तेरे नाम हो जाऊ।
जीना चाहा तो जिंदगी से दूर थे हम !
मरना चाहा तो जीने को मजबूर थे हम !
सर झुका कर कबूल कर ली हर सजा !
बस कसूर इतना था कि बेकसूर थे हम !!
नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं।
कसूर तो उस चहेरे का है जो सोने नहीं देता।
जहाँ कदर ना हो वहा जाना फ़िज़ूल है।
चाहे किसी का घर हो या चाहे किसी का दिल।
हर किसी का दिल में अरमान नहीं होता। हर कोई दिल का मेहमान नहीं होता। पर जो एक बार दिल में बस जाये। उसे भुला कर जीना आसान नहीं होता।